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________________ १४५] ॥॥ जश्तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छास नारियो॥ वाया विध्धुव हमो, अहिअप्पा न. विस्तसि ॥ए॥ तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयार सुभासियं ॥ अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाश्यो॥१०॥ एवं करंति संबुझा, पंडिया पविअक्खणा ॥ विणियति नोगेसु, जहा से पुरिसोत्तमो त्ति बेमि ॥११॥ इति सामन्न पुवीय नाम ऽज्झयणं सम्मत्तं ॥२॥ ३-अध्ययनम्. ___ संजमे सुष्ठियप्पाणं, विप्पमुकाण तारणं ॥ तेसि मेय-मणानं, निगंथाणं भदेसिणं ॥१॥ उदेसियं कीयग, नियागं अनिहमाणि य॥राश्भत्ते सियाणे य, गंध-मले य वीयणे ॥२॥ संनिही गिदिमत्ते य, रायपिंडे किमि. च्छए । संवादण दंत पहोयणा य, संपुच्छण देह पलोयणा य ॥३॥ अठ्ठावए य नालिए, छत्तस्स य धारऽणहाए ॥ तेगिच्छं पाहणा पाए, समारंजं च जोश्णो॥४॥ सिझायर पिमंच,
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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