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________________ [११२] प्रमुख जे क्रीमा, ते पण सवि वरजीजें ॥ मु॥ ॥७॥ पांच इंद्रिय निजवश आणो, पंचाव पञ्चक्खीजे ॥ पंच समिति त्रण गुप्त धरीने, छ. काय रक्षा ते कीजे के ॥ मु०॥ ए॥ ऊनाले यातापना लीजें, शीयाले शीत सहीयें ॥ शांत दांत थर परिसह सहेवा, स्थिर वरसाले रहियें के ॥ मु० ॥१०॥ श्म पुक्कर करणी बहु करतां, धरतां नाव उदासी॥ कर्म खपावी केश हूथा, शिवरमणीशं विलासी के ॥ मु० ११ ॥ दशवैका. लिक त्रीजे अध्ययनें, नांख्यो एह याचार ॥ खानविजयगुरु चरण पसायें, वृद्धिविजय जयकार के॥ मु० ॥ १५ इति॥ ॥ अथ चतुर्थाध्ययनसज्झाय प्रारंजः॥ ॥ सुण सुण प्राणी, वाणी जिन तणी ॥ए देश॥ स्वामी सुधर्मा रे कहे जंबु प्रत्ये, सुण सुण तुं गुणखाणि ॥ सरस सुधारसहूती मीग्डी, वीर जिणेसर वाणि ॥ स्वा० ॥ ए आंकण ॥१॥
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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