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________________ ++ @++ सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ 24+8++ ++23+- ++ ++++ ++ ++ ++ ++ सर्वांगेषु त्वमसि सुभगस्त्वं न शक्यः परेषाम् तत्कि भूषा-वसन-कुसुमैः किं च शस्त्ररुदस्त्रैः॥ ++ LARGAD+Ki+D ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ S++ ++ ++ ++ 'हे परमसाधु श्रीजिनदेव । शृंगारोंके लिये बड़ी बड़ी इच्छाएँ वही करता है जो स्वभावसे ही अमनोज्ञ अथवा कुरूप होता है, । और शस्त्रोंका ग्रहण-धारण भी वही करता है जो वैरीके द्वारा शक्य-जय्य अथवा पराजित होनेके योग्य होता है। आप सर्वाङ्गोंमें सुभग हैं-कोई भी अङ्ग आपका ऐसा नहीं जो असुन्दर अथवा कुरूप हो और दूसरोंके द्वारा आप शक्य भी नहीं हैं-कोई 9 भी आपको अभिभूत या पराजित नहीं कर सकता। इसीसे शरीर-शृङ्गाररूप आभूषणों, वस्त्रों तथा पुष्पमालाओं आदिसे आपका कोई प्रयोजन नहीं है, और न शस्त्रों तथा अस्त्रोंसे ही कोई प्रयोजन है-शृङ्गारादिकी ये सब वस्तुएँ आपके लिये निर* र्थक हैं, इसीसे आप इन्हें धारण नहीं करते । वास्तवमें इन्हें वे * ही लोग अपनाते हैं जो स्वरूपसे ही असुन्दर होते हैं अथवा कमसे कम अपनेको यथेष्ट सुन्दर नहीं समझते और जिन्हें दूसरों द्वारा हानि पहुँचने तथा पराजित होने आदिका महाभय लगा * रहता है, और इसलिये वे इन आभूषणादिके द्वारा अपने कुरूप को छिपाने तथा अपने सौन्दर्यमें कुछ वृद्धि करनेका उपक्रम किया करते हैं, और इसी तरह शस्त्रास्त्रोंके द्वारा दूसरोंपर अपना आतङ्क जमाने तथा दूसरोंके आक्रमणसे अपनी रक्षा करनेका * प्रयत्न भी किया करते हैं।' ++ ++ R++26++e&++ ++20++ 8++GK++E++0 ++++20+ + ++ ++ ++ ++ ++ ++++00000++ ++30++ॐ
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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