SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला ++ S++ 8++ 8++ 8++ ++ ++ ++26++ ++ C++RO++S ++ ++S++ S++20++ S++ 8++ ++Geet+EO+ +EOttee++ ++ ++ ++ ++ लोक-मङ्गल-कामना -+O+क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान् धार्मिको भूमिपालः , काले काले च सम्यग्विकिरतु मघवा व्याधयो यान्तु नाशम् । , दुर्भिक्षं चौर-मारी क्षणमपि जगतां मा स्म भूजीवलोके । जैनेन्द्रं धर्मचक्रं प्रभवतु सततं सर्व-सौख्य-प्रदायि ॥ -जैन नित्यपाठ ___ 'सम्पूर्ण प्रजा-जनोंको मले प्रकार कुशल-क्षेमकी प्राप्ति होवे सारी जनता यथेष्टरूपमें सुखी रहे-राजाशक्तिसम्पन्न और धार्मिक 22 बने-धर्ममें अच्छी तरह निष्ठावान (श्रद्धा एवं प्रवृत्तिको लिये हुए) होवे अथवा धार्मिक राजाका बल खूब बढ़े (जिससे अन्याय अत्याचारोंका मुख न देखना पड़े ), समय समयपर ठीक वर्षा ए हुआ करे-अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि और अनावृष्टिसे किसीको भी पाला न पड़े-, व्याधियाँ-बीमारियाँ नाशको प्राप्त हो जावे, जगत्के जीवोंको दुर्भिक्ष (अकाल), चोरी, और मरी प्लेग-हैजा आदि संक्रामक रोगों)की बला एक क्षणके लिये भी न सतावे,और जैनेन्द्र-धर्मचक्र-श्रीजिनेन्द्रका उत्तमक्षमा मार्दव-आर्जव-सत्यशौच-संयम-तप-त्याग-आकिंचन्य-ब्रह्मचर्यरूप दशलक्षणधर्म अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप रत्नत्रयधर्म-, जो सब जीवोंको सुखका देने वाला अथवा पूर्ण सुखका प्रदाता है वह लोकमें सदा । अस्खलितरूपसे निर्बाध प्रवर्त-उसमें कभी कोई बाधा न पड़े।' ++ ++ ++ ++ORAN+HD+KO++C++Ka++ ++ ++ ++ ++ ++ i++ ++ S++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ C++OE++OE++ ++
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy