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________________ ܀܀܀܀܀܀ ܀܀ प्रस्तावना <-*•* सत्साधुओं का स्मरण बड़ा ही मंगल दायक है । 'चत्तारि मंगलं' में 'साहू मंगलं' पदके द्वारा साधुओं को भी मंगलमय निर्दिष्ट किया है। सत्साधुजन हिंसादि पंच व्रतोंका पालन करते १ हुए कषायों को जीतते हैं, इन्द्रियोंका निग्रह करते हैं-, इन्द्रियों| को अपने अधीन रखते हैं-इन्द्रियोंके विषयोंकी श्राशा नहीं रखते हैं, आरम्भ तथा परिग्रहसे रहित होते हैं और ज्ञान, ध्यान एवं तपमें सदा लीन रहते हैं । और इस तरह आत्मसाधना करते हुए अपना श्रात्मविकास सिद्ध करते हैं तथा अपने आदर्शादि द्वारा दूसरोंके आत्मविकास में सहायक होते हैं । इसीसे सत्साधुको सुकृती, पुण्याधिकारी, पुण्यात्मा, पूतात्मा और पुण्यमूर्ति जैसे नामोंसे भी उल्लेखित किया जाता है। ऐसे पूतात्मा साधुपुरुषोंका संसर्ग अथवा सत्संग जिस प्रकार आत्माको जगाने, ऊंचा उठाने और पवित्र बनाने में सहायक होता है उसी प्रकार उनके पुण्यगुणों का स्मरण भी पापोंसे हमारी रक्षा करता है और हमें पवित्र बनाता हुआ आत्मविकासकी ओर अग्रसर करता है । जैसा कि स्वामी समन्तभद्रके निम्न वाक्यसे प्रकट है :'तथापि ते पुण्यगुणस्मृतिर्नः पुनाति चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ।' स्वयम्भू स्तोत्र स्वामी समन्तभद्रने जहाँ परमसाधुओं के स्तवनको 'जन्मारण्यशिखी' - जन्म-मरणरूपी संसार - वनको भस्म करनेवाली अग्निबतलाया है वहां 'स्मृतिरपि क्लेशाम्बुधेन' इस वाक्यके द्वारा उनकी स्मृतिको दुःख - समुद्रसे पार करनेके लिये नौका भी प्रकट किया ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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