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________________ रोहिताशा " " पश्चिम में बहती है 28.000 सुवर्ण कुला हिरण्यवंत में पूर्व में बहती है 28.000 रूपकुला " पश्चिम में बहती है 28.000 हरिसलिला हरिवर्ष क्षेत्रमें पूर्व में बहती है 56.000 हरिकान्ता " " पश्चिम में बहती है 56.000 नरकान्ता रम्यक् क्षेत्र में पूर्वमें बहती है 56.000 नारीकान्ता " " पश्चिम में बहती है 56.000 कुल - 12 मुख्य नदी -392012 नदी यहां तक जाननी ० सितोदा नदी · निषध पर्वत उपर से तिगिच्छ हद में से निकलकर सितोदा के प्रवाह में गिरकर देवकुरू में बहकर मेरू के पास टेडी होकर देवकुरू में रही 84.000 नदीयो के साथ तथा 16 विजय की दो / नदी = 16 x2 x 14.000 का परिवार और अंतरनदी छ मिलकर - 5,32006. मेंरू से पश्चिम की तरक बहकर समुद्रसेआलिंगन करती है। 16x2 x 14.000 = 4,48000/ + 84000 + 5032006 ० सीता नदी - नीलवंत पर्वत के केसरी हुद में से निकलती है, उसका परिवार भी सीतोदा की तरह जानना पूर्व से होकर समुद्रसे भेटती है । अत : 5,32006 +5,32006 +3,92012 कुल 14,56090 नदीआ. कच्छ आदि आठ विजय में एवं पद्म वि. (17 से 24) 8 विजय में गंगा और सिंघु नाम की और बाकी की विजयो में रक्ता और रक्तवती नामकी नदी है, उसका प्रवाह, ऊडाई आदि भरत और रावत क्षेत्र की नदीओ के समान है। पदार्थ प्रदीप0 60
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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