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________________ तरफ आधार बिना रहे हुए है, और शिखर उपर 500 योजन के विस्तार वाले है, लेकिन मेरू पर्वत उपर आया बलकूट 500 योजन नंदनवन में है, और 500 यो. निराधार है । (2) वैताढ्य के 306 गिरिकूट 6/1.4 योजन मूल में विस्तार वाले और उपर 3 यो. से किंचित अधिक विस्तार वाले है । (3) दूसरे 158 गिरिकूट 500 योजन उंचे 500 यो . मूल में विस्तार वाले और 250 योजन शिखर उपर विस्तार वाले है । (4) वैताढ्य उपर के नव शिखरो में बीच के तीन सुवर्णमय है और बाकी के ६ रत्नमय है। (5) इकसठ पर्वत उपर के कूट मे से अंतमें रहे हुए हर कूट को सिध्धकूट कहा जाता है, प्रत्येक सिध्धकूट उपर सिध्धायतन (शाश्वत जिनेश्वर का मंदिर ) है, उस मंदिर के मध्य भाग में 108 प्रतिमा, हर द्वार पर चार चार प्रतिमा कुल मिलाकर 120 शाश्वत जिन प्रतिमा है । हर प्रतिमा 500 धनुष्य उंची है, उसके अलग अलग अवयव विविध रत्न के बने हुए है। (6) सिध्धकूट बिना के 400 गिरिकूट उपर यथासंभव देव-देवीओ के सम चतुष्कोण प्रासाद (महेल) होते है, उसमें उस कूट के अधिपति देव या देवी रहते है। (7) सिध्धायतन के पश्चिम दिशा की तरफ द्वार नहि है, इहलिए तीन द्वार है। (8) सिध्धायतन का तथा प्रासाद का प्रमाण इस तरह है। नाम लंबाई विस्तार ऊंचाई 34 वैताढय के किञ्चितन्यून 34 सिद्धायतम 1 कोश 01/2 कोश 1 कोश 34 प्रासाद 01/2 कोश 01/2 कोश 1 कोश शेष 27 पर्वत के 27 सिद्धायतन 50 यो 25 योजन 36 योजन 27 प्रासाद 31/1/4 31/1/4 योजन 62/1/2 यो पदार्थ प्रदीपED560
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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