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________________ आत्मप्रदेश पूरे लोक में फैल जाते है, पांचमे समये • आंतरो का संहार, छठे समय - एक कपाट का, सातमे समय दूसरे कपाट का संहार, आठमे समय - दण्ड का संहरण करके देहस्थ हो जाता है, इसका काल आठ समय है, शेष का अंतर्मुहूर्त काल है । । तीन दृष्टि । हर व्यक्ति भिन्न भिन्न नजर से पदार्थों को देखता है, उसे दृष्टि कहते 1. मिथ्यादृष्टि - आध्यात्मिक क्षेत्र में विवेक विकल आत्मा, जो सर्वज्ञ वचन उपर आस्था नहिं रखता है | 2. सम्यग्दृष्टि - जो सर्वज्ञ वचन उपर पूर्ण आस्था रखता है । 3. मिश्रदृष्टि · सर्वज्ञ वचन उपर रुचि और अरुचि का अभाव रखना। चार प्रकार के दर्शन निराकार सामान्य उपयोग दर्शन है। 1. चक्षु से रूप में रहे सामान्य धर्म को जानने की शक्ति · चक्षुदर्शन 2. शेष इन्द्रिय तथा मन से रसादि के सामान्य धर्म को जानने की शक्ति - अचक्षुदर्शन । 3. अवधिज्ञान से ज्ञेय पदार्श के सामान्य धर्मको जानने की शक्ति . अवधिदर्शन । 4. सकल पदार्थ के सामान्य धर्म को जानने कि शक्ति . केवलदर्शन । ० दर्शन में जाति आदि के उल्लेख का अभाव होने से विपरित दर्शन कासंभव नहि है। पदार्थ प्रदीप 3 4
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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