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________________ सोल प्रकार की संज्ञा 1. आहार - खाने की इच्छा 2. भय - घबराट 3. मैथुन - विषय सेवन की इच्छा 4. परिग्रहं . संग्रह करने की इच्छा 5. ओघसंज्ञा - 1. पूर्व संस्कार - बालक जन्मते ही स्तन-पान करता है। 2. अन्त निहित अर्थ वाला जैसा मोघम ज्ञान 3. सामान्य शब्दअर्थका भान 4. (दर्शनोपयोग) 6. लोकसंज्ञा - 1. लोक व्यवहार को अनुसरने की वृत्ति - कुत्ता यक्ष है, कूत्ते यम को देखते है, ब्राह्मण देव है, अगस्त्य ऋषि समुद्र पी गये, इत्यादि अनेक लौकिक कल्पना (विचारणा) वह लोकसंज्ञा 2.शब्द अर्थ का विशेष ज्ञान 3. ज्ञानोपयोग 7/8/9/10 - क्रोध, मान, माया, लोभ । 11. मोह • ममत्व भाव 12. धर्म - धर्म करने की प्रवृत्ति 13. सुख - आनंद की अनुभूति 14. दुःख - दुःख का भाव 15. जुगुप्सा - थुत्कार करना | तिरस्कार वृत्ति 16. शोक - दिलगीरी.का भाव ( किस कर्म के उदय से (1) अशातावेदनीय के उदय से, (2) भय मोहनीय के उदय से (3) वेद मोहनीय के उदय से, (4) लोभ मोहनीय के उदय से (5.6) मति ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय के क्षयोपशम से | (7,8,9,10) कषाय मोहनीय के उदय से | (11) मोहनीय कर्म के उदय से | 29 पदार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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