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________________ . इन इन द्रव्य प्राण को धारण करने की अपेक्षा से संसारी जीव का जीवन होता है, और वियोग होने से मरण । लेकिन आत्मा तो अमर रहेती है, मगर दर्शन ज्ञान चारित्र रूप भाव प्राण को कर्म के क्षयोपशम अनुसार भिन्नता प्राप्त होती है । नव तत्त्व . जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष ये नो जगत के मूलभूत पदार्थ है । अर्थात इनो के आधार पर पूरा जगत 1. जीव, अजीव - ज्ञेय - जानने -पहचानने योग्य है। 2. पाप, आश्रव, बंध - सर्वथा हेय - छोडने जैसे है । 3. पुण्य - उपर की भूमिका प्राप्त करने पर त्याज्य , उससे पहले सहायक होने से उपादेय भी है। 4. संवर, निर्जरा, मोक्ष - उपोदय है | स्वीकारने योग्य है । जीव तत्व जीव के चौद भेद है। (1) सूक्ष्म अकेन्द्रिय (5) चउरिन्द्रिय (2) बादर अकेन्द्रिय (6) असंज्ञी पन्चोन्द्रिय (3) बेइन्द्रिय (7) संज्ञी पन्चोन्द्रिय (4) तेइन्द्रिय पर्याप्ता और अपर्याप्ता से 14 भेद होते है। . ..|| जीव के छ लक्षण (1) ज्ञान (2) दर्शन (3) चारित्र (4) तप (5) वीर्य (6) उपयोग 1. ज्ञान - पदार्थ की विशेष रूप से जानकारी । 2. दर्शन - पदार्थ पर द्रष्टिपात करने मात्र से प्राप्त सामान्य जानकारी। 3. चारित्र - मोहनीय कर्म का क्षयोपशमादि रूप शुभ भाव युक्त शुभ पदार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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