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________________ (3) ज्योतिष - सूर्य-चंद्र आदि विमान में वास करने वाले देव। (4) वैमानिक - सौधर्मादि विमानमें रहने वाले । वैमानिक के दो भेद है । (1) कल्पोपपन्न - मनुष्य लोक समान जहां स्वामी सेवक आदि का व्यवहार होता है। (2) कल्पातीत - ऐसा व्यवहार जहां न हो वे ग्रेवेयक अनुत्तर वासी देव। ० जीव के उत्पत्ति स्थान को योनी कहते है । रूप-रस आदि के भेद से उसके चोराशी लाख भेद पडते है । एक योनी में अनेक प्रकार के जीवो की उत्पति होती है, उसे कुलकोटी कहते है, अथवा गोबर आदि एक में उत्पन्न होने वाले वींछी आदि में रूप, आकार आदि के भेद से अनेक प्रकार के वींछी उत्पन्न होते है, इस प्रकार से पृथ्वीकाय आदि के १२ लाख कुल कोटि इत्यादि भेद बनते है । उत्कृष्ट अवगाहना नरक की अवगाहना • पांचसो धनुष चतुष्पद की अवगाहना - छ गाउ मनुष्य की अवगाहना - तीन गाउ देव की अवगाहना - सात हाथ आयुष्य तिर्यञ्च मनुष्य का जघन्य आयुष्य · अंतमुहूर्त देव नारक का जघन्य आयुष्य - 10,000 वर्ष पृथ्वीकाय - 22.000 वर्ष । वायुकाय - 3,000 वर्ष । अप्काय - 7,000 वर्ष । प्रत्येकवनस्पतिकाय - 10.000 वर्ष । तेउकाय - तीन अहोरात्र । सभीका जघन्य आयुष्य · अंतमुहूर्त | देव नारक उत्कृष्ट आयुष्य - तेत्तीस सागरोपम । पल्योपम ० चार कोश लम्बे - चौडे गहरे खड्डे को युगलिक के वालाग्र से भरके पदार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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