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________________ सच है", एसी मनमें अटल श्रद्धा हो तो उसे समकित कह सकते है । इसलिये तो पदार्थ में विपरीत ज्ञान वाला भी समकित का मालिक बन सकता है । जैसे आत्मा मरती नहि है अतः अमर है जैसा विपरीत ज्ञान हुआ, लेकिन वह तो यह ही मानता है में जिन मार्ग पर चल रहा हुं । इतना अवश्य कह सकते है कि उसे कोई समजाने वाला मिले तो वह अपनी बात का कदाग्रह नहिं रखता । इसी कारण अन्य मार्ग के प्रणेता के अलावा उसके अनुयायीओ में समकित की संभावना की गई है । चारित्र मोहनीय - क्रोधादि कषाय का उदय समकित आदि आत्मिक गुण को प्राप्त करने नहिं देता । विषयकषाय में अल्प रूचि वाला, सुंदर क्रिया कारी अल्प संसारी होता है । यदि ऐसे क्रोधादि की मात्रा 15 दिन तक रहे तो संज्वलन उससे ज्यादा 6 महीना तक रहेतो प्रत्याख्यानी 12 महीने अप्रत्याख्यानी उससे ज्यादा रहे तो उसे अनंतानुबंधी कषाय कहते है, जैसे किसीके साथ झघडा हुआ फिर 12 महीने तक उसके प्रति वैर भाव रखा, उसी प्रकार इष्ट वस्तु पर 12 महीने तक राग भाव रखा यह अनंतानुबंधी का प्रभाव आयुष्य - एक आयुष्य का उदय हमेशा रहता है, यदि सोपक्रम के कारण आयुष्य जल्दी / शीघ्रपूर्ण होने वालीहोती है तो शीघ्र ही नया आयु बांध लेता है। नाम कर्म - दुनिया में जो कुछ भी विविधता पाई जाती है, उसमें नाम कर्म का बडा नाम है । रंग दोरंगी फूलो का सर्जन ठिंगूजी से लेकर लम्बू का भेद, खुब सूरत से खूब भयंकर इन सबके लिये भिन्न जाति के नाम कर्म काम करते है । तीर्थकर बनने का नाम कर्म होता हैतो तो डकैति डालने 'वाले का भी नाम कर्म होता है । सूर्य में गर्मी आतप व चन्द्र में सौम्यता उद्योत नाम कर्म की बलीहारी है । कीसी को यश और किसी को जुत्ते मिलते 103 पदार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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