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________________ सागारधर्मामृत [ ४१ यह भी सिद्ध होता है कि श्रावकके खेती व्यापार आदि आजीविका कार्य गौण हैं, तथा दान पूजा पढना आदि कार्य मुख्य हैं, श्रावकको इन्हें अपना कर्तव्य समझकर करना चाहिये । दूसरी यह बात सिद्ध होती है कि सम्यग्दर्शनपूर्वक ही देशसंयम धारण किया जाता है और देशसंयमीको दानपूजन अवश्य करना चाहिये ॥ १५ ॥ इसप्रकार पांचवें गुणस्थानका वर्णन किया । अब आगे पांचवे गुणस्थानके द्रव्य भावरूप जे ग्यारह भेद हैं अर्थात् श्रावककी जो ग्यारह प्रतिमा हैं उनमें से महाव्रत पालन करनेकी उत्कट इच्छा रखनेवाला जो सम्यग्दृष्टि श्रावक अपनी " २ आयुश्रीवपुरादिकं यदि भवेत्पुण्यं पुरोपार्जितं स्यात्सर्वं न भवेन्न तच्च नितर|मायासितेऽप्यात्मनि । इत्यार्याः सुविचार्य कार्यकुशलाः कार्येऽत्र मंदोद्यमाः द्रागागामिभवार्थमेव सततं प्रीत्या यंतंते तराम् ॥ अर्थ- जो पूर्व जन्म में पुण्यकर्म उपार्जन किये हैं तो इस जन्म में दीर्घ आयु, लक्ष्मी, सुंदर व नीरोग शरीर आदि संसारके सुखोंकी समस्त सामग्री प्राप्त होती ही है तथा जो पूर्वजन्ममें पुण्य नहीं किया है तो अत्यंत प्रयत्न करनेपर भी सुख नहीं मिलता । इसलिये जो आर्यपुरुष विचार पूर्वक कार्य करने में कुशल हैं वे लोग इस लोक संबंधी कार्यो में साधारण प्रयत्न करते हैं और आगामी भवकी सुखसामग्री के लिये निरंतर अधिकसे अधिक प्रयत्न करते रहते हैं, अर्थात् दान पूजा अध्ययन आदि धर्म क्रियाओंको मुख्य मानते हैं और खेती व्यापार आदि लौकिक क्रियाओंको गौण मानते हैं ।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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