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________________ विषय । (३१) शुद्ध आचरणवाले शूद्रको भी यथायोग्य धर्म याओंके करनेका अधिकार पाक्षिक श्रावकको पूजनादि करनेके लिये प्रेरणा अथवा पाक्षिकका कर्तव्य जिनपूजाकी महिमा नित्यमहका स्वरूप आष्टान्हिक और ऐंद्रध्वजका स्वरूप महामह कल्पवृक्ष यज्ञ बलि स्नपन आदिका इन्ही पूजाओंमें अंतर्भाव अष्ट द्रव्यसे होनेवाली पूजाका फल पूजाकी उत्तम विधि और उससे होनेवाला लोकोत्तर विशेष फल अणुव्रतीको जिनपूजासे इच्छानुसार फलकी प्राप्ति जिनपूजा में विघ्न न आनेका उपाय स्नानकर पूजा करना, यदि स्नान न किया हो तो दूसरे कराना जिनप्रतिमा और मंदिर बनानेका उपदेश जिनप्रतिमाकी आवश्यकता जिनमंदिरोंके आधारपर ही जैनधर्मकी स्थिति वसतिकाकी आवश्यकता स्वाध्यायशाला वा पाठशालाकी आवश्यकता अन्नक्षेत्रं, प्याऊ, औषधालयकी आवश्यकता और जिन पृष्ठ । ९२ ९४ ९५ ९७ ९९ ९९ .. श्लोक २२ २३ २४ २५ २६. २७ 2 2 १०० २८ .१०१ २९ १०१३० १०३. ३१ १०५ ३२ १०६ ३३ १०७ ३४ १०९ ३५ १११ ३६ ११२ ३७ ११३ ३८ ११४ ३९ 1
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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