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________________ सागारधर्मामृत [ २८५ अपने सम्राट्के विरुद्ध किसी अन्य राजाकी सहायता करता है तब उसके विरुद्ध राज्यातिक्रम अतिचार होता है । श्री सोमदेव आचार्यने अधिक तौलना वा मापना और कम तौलना वा मापना इन दोनोंको अलग अलग दो अतिचार माने हैं । उन्होंने लिखा है - " मानवन्न्यूनताधिक्ये स्तेनकर्म ततो ग्रहः । विग्रहे संग्रहोऽर्थस्यास्तेयस्यैते निवर्तकाः ॥ " अर्थात् -" जो वस्तु तौलने वा नापने योग्य है उसे देते समय कम तौलकर वा कम नापकर देना लेते समय अधिक तौलकर वा अधिक मापकर लेना, चोरी कराना, चोरसे चुराये हुये पदार्थको लेना वा खरीदना और युद्ध के समय पदार्थोंका संग्रह करना ये पांच अचौर्यव्रत के अतिचार हैं ॥ ५० ॥ आगे -- स्वदार संतोष अणुव्रतको स्वीकार करने की विधि कहते हैं— प्रतिपक्षभावनैव न रती रिरंसारुजि प्रतीकारः । इत्यप्रत्ययितमनाः श्रयत्वहिंस्रः स्वदार संतोषं ॥ ५१ ॥ अर्थ - - " स्त्रीके संभोग करनेकी इच्छा होना एक प्रकारका रोग है और उसके दूर करनेका उपाय उस इच्छा के प्रतिकूल ब्रह्मचर्यकी भावना है अर्थात् चित्तमें ब्रह्मचर्यव्रतका बारबार चितवन करनेसे ही स्त्री के साथ संभोग करनेकी इच्छारूप रोगका नाश हो जाता है स्त्रीके साथ संभोग करने से वह नष्ट नहीं होता " ऐसा दृढ निश्चय जिसके अंतःकरणमें नहीं हुआ है ऐसे थोडीसी हिंसा करनेवाले अणुव्रती श्रावकको स्वदार संतोषव्रत धारण करना चाहिये, अर्थात् उसे
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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