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________________ | २६२ ] . चौथा अध्याय आगे-नियतसमयतक और सदा मौनव्रतके विशेष | उद्यापन के निर्णय करने के लिये कहते हैं उद्योतनं महेनैकघंटादानं जिनालये । असार्वकालिके मौने निर्वाहः सार्वकालिके ॥ ३७॥ अर्थ-जो मौनव्रत अपनी शक्ति के अनुसार किसी नियमित कालपर्यंत पालन किया गया है उसका उद्यापन' अर्थात् विशेष फल प्राप्त होनेकेलिये उसका माहात्म्य प्रगट करना चाहिये । बडे भारी उत्सव अथवा पूजाके साथ२ अरहंत भगवानके मंदिरमें एक घंटा समर्पण करना ही उसका उद्यापन है। तथा जो मौनव्रत जन्मपर्यंत सदाफेलिये धारण किया गया है उसको जन्मपर्यंत निराकुल रीतिसे निर्वाह करना ही उसका उद्यापन' है ॥ ३७॥ है उसकी वाणी शास्त्रकी रचनासे भरी हुई, मनोहर और सबको ग्रहण करने योग्य हो जाती है। पदानि यानि विद्यते वंदनीयानि कोविदैः । सर्वाणि तानि लभ्यते प्राणिना मौनकारिणा ॥ अर्थ-विद्वानोंको मान्य ऐसे जितने पद हैं वे सब मौन धारण करनेवालेको स्वयं मिलजाते हैं । १-भव्येन शक्तितः कृत्वा मौनं नियतकालिकं । जिनेंद्रभवने देया घंटैका समहोत्सवं ॥ अर्थ-भव्य श्रावकको अपनी शक्तिके अनुसार नियतकालतक मौनव्रत पालन करके उसके उद्यापन करनेकेलिये जिन मंदिर में उत्सवके साथ एक घंटा अर्पण करना चाहिये । २-न सार्वकालिके मौने निर्वाहव्यतिरेकतः । उद्योतनं परं प्राज्ञैः -
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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