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________________ सागारधर्मामृत [२०१ कन्याके साथ विषय सेवन नहीं करना चाहिये अथवा इस कन्याका विवाह किसी अन्यके साथ न हो मेरे ही साथ हो इस अभिप्रायसे अर्थात् अपना विवाह करनेके लिये किसी कन्याके दोष प्रगट नहीं करना चाहिये । तथा किसी कन्याके साथ गांधर्व विवाह भी नहीं करना चाहिये । माता पिता भाई आदिकी संमति और प्रमाणके विना पुरुष और कुमारीके परस्परके प्रेमसे जो विवाहरूप संबंध हो जाता है उसे गांधर्वविवाह कहते हैं ऐसा विवाह भी उसके लिये सदोष है तथा आदि शब्दसे किसी कन्याको हरणकर उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिये । भावार्थ-ये सब परस्त्रीत्यागके अतिचार हैं दर्शनिक श्रावकको इनका अवश्य त्याग करना चाहिये ॥ २३ ॥ इसप्रकार पांच व्यसनोंके अतिचार यहां कहे तथा मद्य और मांस व्यसनके अतिचार पहिले कहचुके हैं इसतरह सातों व्यसनोंके अतिचार कह चुके । ___ अब आगे--जैसे दोनों लोकोंके विरुद्ध होनेसे मद्य मांस आदि व्यसनोंका स्वयं त्याग करता है उसप्रिकार व्रतोंको विशुद्ध रखनेकेलिये दूसरोंके लिये भी उनका प्रयोग नहीं करना चाहिये । इसका उपदेश देते हैं व्रत्यते यदिहामुत्राप्यपायावद्यकृत्स्वयं । तत्परेऽपि प्रयोक्तव्यं नैवं तद्वतशुद्धये ॥२४॥
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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