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________________ Vvvvvv vavi १९४] तीसरा अध्याय मुहूर्तमें अर्थात् सूर्योदयसे दो घडीतक और सूर्य अस्त होनेमें जो दो घडी शेष रहीं हैं उनमें भोजन नहीं करना चाहिये । तथा रोग दूर करनेकेलिये आम, चिरोंजी, केला, दालचीनी आदि फल और घी, दूध, ईखकारस आदि रस भी उससमय अर्थात् सूर्योदयसे दो घडीतक और सूर्य अस्त होनेकी पहिली दो घडीमें नहीं खाना चाहिये । अपि शब्दसे यह भी सूचित होता है कि जब उससमय रोग आदि दूर करनेकेलिये फल आदि पदार्थ नहीं खाना चाहिये तब अपना खास्थ्य बनाये रखनेकेलिये तो उससमय इनको कभी नहीं खाना चाहिये । भावार्थ-सूर्योदयसे दो घडीतक और सूर्य अस्त होनेमें जो दो घडी बाकी रहती हैं उनमें कुछ भी चीज खाना रात्रिभोजनत्यागवतके अतिचार हैं । रात्रिभोजनत्यागी दर्शनिक श्रावकको इससमय खानेका अवश्य त्याग करना चाहिये ॥१५॥ आगे-जलगालनव्रतके अतिचार छोडनेके लिये कहते हैंमुहूर्तयुग्मोर्ध्वमगालनं वा दुर्वाससा गालनमंबुनो वा। अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासोनिपानेऽस्य न तव्रतेच॑ः।।१६॥ अर्थ-छने हुये पानीको भी दो मुहूर्त अर्थात् चार घडीके | पीछे नही छानना, तथा छोटे, छेदवाले मैले, और पुराने कप| डेसे छानना और छाननेके बाद बचेहुये पानीको किसी दूसरे | जलाशयमें डालना ये जलगालनव्रतमें दोष उत्पन्न करनेवाले वा
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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