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________________ (११) मालवाधीश महाराज अर्जुनदेव बड़े भारी विद्वान और कवि थे। अमरुशतककी उनकी बनाई हुई रससंजीविनी नामकी एक टीका काव्यमालामें प्रकाशित हुई है। इस टीकामें जगह जगहपर 'यदुक्तमुपाध्यायेन बालसरस्वत्यपरनाम्ना मदनेन' इस प्रकार लिखकर मदनोपाध्यायके अनेक श्लोक उदाहरणस्वरूप उद्धृत किये हैं और भव्यकुमुदचन्द्रिका टीकाकी प्रशस्तिके नवमश्लोकके अन्तिमपदकी टीकामें पं० आशाधरने भी लिखा है, " आपुः प्राप्तः, के बालसरस्वतिमहाकविमदनादयः।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि अमरुशतकमें जिनके श्लोक उदाहरणस्वरूप ग्रहण किये गए हैं, वे ही आशाधरके शिष्य महाकवि मदन हैं। इसके सिवाय प्राचीन लेखमालामें अर्जुनवर्मदेवका जो तीसरा दानपत्र प्रकाशित हुआ है, उसके अन्तमें "रचितमिदं राजगुरुणा मदनेन" इस प्रकार लिखा हुआ है। इससे इस विषयमें भी शंका नहीं रहती है कि आशाधरके शिष्य मदनोपाध्याय जिनका दूसरा नाम 'बालसरस्वती' था, मालवाधीश महाराज अर्जुनदेवके गुरु थे। __अमरुशतककी टीकामें जो श्लोक उद्धृत किये गए हैं, उनसे मालूम पड़ता है कि महाकवि मदनोपाध्यायका बनाया हुआ कोई अलंकारका ग्रन्थ होगा जो अभीतक कहीं प्रसिद्ध नहीं है। हमारे एक विद्वान् भित्रने लिखा है कि बालसरस्वती मदनोपाध्यायकी बनाई हुई एक पारिजातमंजरी नामकी नाटिका
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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