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________________ १६० ] दूसरा अध्याय योंको जो 'अभयदान देता है अर्थात् सबका भय दूर करता है वही दयालु है और वही अन्न आदि दान देनेवालों में मुख्य है । ऐसा पुरुष निर्भय होकर सुंदरता, तथा उपलक्षणसे स्थिरता, गंभीरता, पराक्रम, प्रभावशालीपना, सौभाग्य, शांतपना, नीरोगपना, अनेक तरह के भोगोपभोग, यशस्वीपना और बडी १ - तेनाधीतं श्रुतं सर्वे तेन तसं परं तपः । तेन कृत्स्नं कृतं दानं यः स्यादभयदानवान् ॥ अर्थ - जिसने एक अभयदान ही दिया उसने समस्त द्वादशांगका अध्ययन किया, उत्कृष्ट तप किया और आहार आदि समस्त दान दिये ऐसा समझना चाहिये । धर्मार्थकाममोक्षाणां जीवितं मूलमिप्यते । तद्रक्षता न किं दत्तं हरता तन्न किं हृतं ॥ अर्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का मूल कारण एक जीवन ही है। जिसने ऐसे इस जीवनकी रक्षा की उसने क्या नहीं दिया अर्थात् सब कुछ दिया । तथा जिसने इसका हरण किया उसने सब कुछ हरण कर लिया । दानमन्यद्भवेन्मा वा नरश्चेदमभयप्रदः । सर्वेषामेव दानानां यतस्तद्दानमुत्तमं ॥ अर्थ- जो मनुष्य अभयदान देता है वह अन्य दान दे अथवा न दे क्योंकि सब दानों में एक अभयदान ही उत्तम दान है। उसे देनेवाला मनुष्य स्वयं उत्तम हो जाता है । यो भूतेष्वभयं दद्याद्भूतेभ्यस्तस्य नो भयं । यादृग्वितीर्यते दानं तादृगाध्यास्यते फलं ॥ अर्थ - जो समस्त प्राणियों को अभयदान देता हैं उसको किसी भी प्राणीसे भय नहीं होता क्योंकि जो जैसा दान देता है उसे वैसा ही फल मिलता है ।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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