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________________ (८) हमारे देशके ऐसे कितने विद्वानोंकी कीर्तिका नाम शेष न कर दिया होगा! ___ आशाधरकी प्रशस्तिमें बिल्हण कवीशका नाम देखकर पहले हमने समझा था कि काश्मीरके प्रसिद्ध कवि बिल्हण ही जिनकी उपाधि विद्यापति थी, आशाधरकी प्रशंसा करनेवाले हैं । परन्तु वह केवल एक भ्रम था। विद्यापति बिल्हण और मालवा राज्यके मंत्री कवीश बिल्हणके समयमें लगभग डेढ़ सौ वर्षका अन्तर है । विद्यापति बिल्हण काश्मीरनरेश कलशके राज्यकालमें विक्रम संवत् ११२०के लगभग काश्मीरसे निकला था। जिस समय वह धारामें आया था, 'भोजदेवकी मृत्यु हो चुकी थी। इससे स्पष्ट है कि विन्ध्यवर्मा के मंत्री बिल्हणसे विद्यापति बिल्हण भिन्न पुरुष थे। बिल्हणचरित नामका एक काव्य बिल्हण कविका बनाया हुआ प्रसिद्ध है। परन्तु इतिहासज्ञोंका मत है कि उसका कर्ता बिल्हण नहीं है। किसी दूसरे कविने उसकी रचना की है और यदि बिल्हणने की हो, तो वह विद्यापति बिल्हणसे भिन्न होना चाहिये । परन्तु भिन्न होकर भी वह विन्ध्यवर्माका मंत्री बिल्हण नहीं हो सकता । क्योंकि उक्त काव्यमें जिस वैरिसिंह १-राजा भोजकी मृत्यु वि. सं. १११२के पूर्व हो चुकी थी और १११५में उदयादित्यको राज्य मिल चुका था, ऐसा परमार राजाओंके लेखोंसे सिद्ध हो चुका है।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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