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________________ छे, मोटी मोटी नदीयो ओळगी के छे, पण मरणनी जे वखत ठरेली छे ते आंखना एक पलक मात्र पण मोटा देवताओथी ओळगी शकाती नथी. माठे आपणुं कोई वहालुं सगुं मरी माय ते वखत पुन्यना काम करवाना मूकी दईने डाह्यो (सुज्ञ) माणस कोई रोतो बेसशे ? कोईपण नहीं. का. रण रोवाथी हमेश दुःखज उपजवानुं है. आक्रंदं कुरुते यदत्र जनता नष्टे निजे मानुषे जाते यच्च मुदं तदुव्रतधियो जल्पंति वातूलतां ॥ यजाड्यात्कृत दुष्ट चेष्टित भवत्कर्म प्रबंधो दया न्मृत्यूत्पत्ति परंपरा मयमिदं सर्वं जगत्सर्वदा ॥२३॥ भावार्थ:-श्रा संसारमा जे लोको पोतार्नु ईष्ट माणस अरी जवाथी रुए कूटे छे, अने कोई ईष्ट प्राणीनो जन्म थवाथी हर्ष माने छे ते बधुं भ्रमिष्ट माणसना बकवा जे छे. कारण के आ आखं जगत पोतानां कयाँ कर्म उदय आधे ते प्रमाणे सदा सर्व काल जन्म मरणना फेरामां छेज, गुर्वी भ्रांतिरियं जड़त्वमथवा लोकस्य यस्मा द्वसन् संसारे बहुदुःखजालजटिले शोकी भवत्यादि।
SR No.022361
Book TitleAnitya Panchashat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi Acharya
PublisherMotilal Trikamdas Malvi
Publication Year1966
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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