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________________ J. (२२) थाय छे. वास्ते जे लोक पोताना सगावहालाना मरणने लीधे शोक करवा बेसे छे तेमने अमे मूर्खना शिरोमणी मानीय छीए. किं जानासि न किं श्रृणोषि ननु किं प्रत्यक्षमेवेक्षसे निश्शेष जगदिंद्र जालसदृशं रंभेव सारोज्झितं ।। किं शोकं कुरुक्षेत्र मानुषपशोलोकांतरस्थे निजे तत्किंचित्कुरुयेन नित्यपरमानंदास्पदंगच्छसि॥१२॥ भावार्थ:-हे मनुष्यरूप पशू ! तुं आ जगत इंद्रजाळ जेवू अने केळना गाभानी पेठे असार जाणतो नथी के शुं ? अने तेवी रीते सांभब्युं नथी के शुं? वळी प्रत्यक्ष तारी नजरे जोतो नथी के शुं ? अरे आ संसारमा पोतानुं वहालुं कोई परलोक जाय तेना माटे तुं शोक शुं-करे छे ? एवू काई आत्म कल्याणचें काम कर के जेनाथी लु सदा काळ परमानंद पदने स थईश. जातो जनो म्रियत एव दिनेच मृत्योः प्राप्ते पुनस्त्रि भुवनेपि न रक्षकोस्ति ॥
SR No.022361
Book TitleAnitya Panchashat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanandi Acharya
PublisherMotilal Trikamdas Malvi
Publication Year1966
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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