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________________ तीसरा अध्याय 21. लोकस्याथस्तिर्यक्त्वं ........... इति भावयेत। वही, 8, का, 190 को टीका पृ० 103 22. स्वाख्यातधर्म चिन्तनं ........ इति भावयेत। वही, 8, का0 150 को टीका, पृ० 108। 23. प्रशमरति प्रकरण, 8, का0 161, पृ०110 24. (क) बोथरेच दुर्लभता........ भावयेत। वही, का० 150 की टीका, पृ० 103 25. वही, 8, का० 163, पृ० 112 26. वही, 8, का0 164, पृ० 113 27. वही, 8, का० 165, पृ० 114 28. धर्मोऽयं स्वाख्यातो ........ संसार सागरं लीलयोत्तीर्ण :। प्रशमरति प्रकरण, 8, का० 161, पृ० 110 29. सेव्यः शान्तिदिवमार्जव ......... धर्मविधिः। 30. क्षान्तिः क्षमूषु सहने, क्षमितव्याः आकोश प्रहारादयः। वही, 8, का० 167 की टीका, पृ० 115 । 31. योऽयं दश प्रकारो ....... धर्मनिति। प्रशमरति प्रकरण9,का०168 की टीका, पृ०115-116 32. मार्दवं मान विजयस्तद्वत्तापनोदः। वही, पृ० 115-116 33. जाति कुल रुप बल लाभ बुद्धिवाल्लम्यक श्रुतमदान्थाः। वही, 5, का० 80, पृ० 55 34. वही, 6, का० 81-82, पृ० 56-57 35. वही, 6, का० 83-84, पृ० 57-58 36. प्रशमरति प्रकरण, 6, का० 87-88, पृ० 60-61 37. वही, 6, का० 87-88, पृ० 60-61 38. वही, 6, का० 89 90, पृ० 61-62 39. वही, 6, का०91-92, पृ० 62 40. प्रशमरति प्रकरण, 6, का0 93-84, पृ० 63-64 41. वही, 6, का० 95-96, पृ० 64-65 42. तदायता गुणाः ........ मार्दव सेवनीयम्। - वही, 9, का० 169, की टीका, पृ. 116 43. आर्जवं ऋजुता यथा चरिताख्यायिता। वही, 8, का0 167 की टीका, पृ० 115 44. प्रशमरति प्रकरण, 2, का0 170, पृ० 117 45. शुचि भावः शौचम् - वही, 8, का० 167 की टीका, पृ० 115
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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