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________________ दूसरा अध्याय द्रव्य व्यापक अव्यापक जीव पुद्गल काल धर्म अधर्म आकाश कर्ता - भोक्ता की अपेक्षा : कर्ता - भोक्ता की अपेक्षा द्रव्य दो प्रकार के हैं - (1) कर्ता उपभोक्ता (2) अपकर्ता उपभोक्ता। जो द्रव्य अपने कर्म भाव का उपभोग करे, वह कर्ता उपभोक्ता है और जो कर्मभाव का उपभोग न करे, वह अपकर्ता उपभोक्ता है। केवल जीव द्रव्य उपभोक्ता है। शेष द्रव्य अपकर्ता उपभोक्ता हैं 85 । द्रव्य कर्ता-भोक्ता अपकर्ता भोक्ता जीव धर्म अधर्म पुद्गल आकाश काल उक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि द्रव्य के मुख्यतः दो भेद हैं - जीव और अजीव । अजीव के पाँच भेद हैं - पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल। इस प्रकार द्रव्य के छह भेद हो गये हैं जिसका विस्तारपूर्वक वर्णन क्रमशः निम्न प्रकार किया गया है : जीव द्रव्य : जीव एक प्रमुख द्रव्य है। जैन दर्शन में आत्मा और जीव - ये दोनों एक ही माने गये है। यद्यपि जीव से तात्पर्य संसारी जीव से लिया जाता है और आत्मा का तात्पर्य मुक्त जीव से, लकिन इनके अर्थों में कोई अन्तर नहीं है।
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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