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________________ 108 प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन धर्मकथांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, उपासकाध्ययनांग, अन्तःकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादिक दशांग, प्रश्न व्याकरणांग, विषाक सूत्रांग और दृष्टिवादांग - ये बारह भेद हैं। उक्त दोनों परोक्षज्ञान का विषय समस्त द्रव्यों के कुछ पर्याय है21 । प्रत्यक्षज्ञान : सम्यग्ज्ञान का दूसरा भेद प्रत्यक्षज्ञान है। यह इन्द्रिय और मन रहित ज्ञान है। यह आत्मा की सहायता से उत्पन्न होता है। प्रशमरति प्रकरण के टीकाकार ने इसके स्वरुप का कथन कर बतलाया है कि जो ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा से उत्पन्न होता है, वह प्रत्यक्षज्ञान कहलाता है। जैसे - अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवल ज्ञान ये तीनों प्रत्यक्ष ज्ञान है। अवधिज्ञान : अवधिज्ञान प्रत्यक्ष सम्यग्ज्ञान है। इसके स्वरुप का कथन किया गया है और बतलाया गया है कि इन्द्रियादिक पर पदार्थों की अपेक्षा रहित आत्मा के द्वारा रुपी पदार्थों का जो ज्ञान होता है, उसे अवधिज्ञान कहते हैं। यह क्षयोपशमिक ज्ञान है, क्योंकि यह क्षय एवं उपशम दोनों के कारण उत्पन्न होता है। ___ अवधिज्ञान के जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट आदि अनेक भेद हैं। यह केवल रुपी पदार्थों को जानता है। इसलिए इसका विषय केवल स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण से युक्त रुपी पदार्थ है। मनः पर्ययज्ञान : मनः पर्ययज्ञान प्रत्यक्षज्ञान का दूसरा भेद है। इसका अर्थ होता है - दूसरे के मन में स्थित पदार्थों का ज्ञान। प्रशमरति प्रकरण में मनः पर्यय ज्ञान की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि जो इन्द्रियादिक पर पदार्थों की सहायता के बिना आत्मा द्वारा दूसरे के मन में स्थित सरल अथवा जटिल रुपी पदार्थों को जानता है, उसे मनः पर्यय ज्ञान कहा गया है। मनः पर्यय ज्ञान के दो भेद हैं- ऋजुमति और विपुलमति। ऋजुमति मनः पर्यय ज्ञान : इसके स्वरुप का कथन कर बतलाया गया है कि सरल मन- वचन-काय से चिन्तित दूसरे के मन में स्थित रुपी पदार्थ को जो जानता है, उसे ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञान कहते हैं। विपुलमति मनः पर्यय ज्ञान : विपुलमति ज्ञान मनः पर्यय ज्ञान का दूसरा भेद है। प्रशमरति प्रकरण के टीकाकार ने इसके स्वरुप का कथन किया है और बतलाया है कि जो सरल अथवा कुटिल मन-वचन-काय
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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