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________________ 99 चतुर्थ अध्याय 16. परविभववादिदर्शन्माच्चित परिणामो जाय ते। .............. एवमाथा वहवोन्येडऽपि द्वेष . पर्यायाः। वही, 1, का० 19, की टीका, पृ० 16 17. सकोथ मान मायालोभैरति दुर्जयैः परामृष्टः। वही, 2, का० 24, पृ० 19 18. कोथनं क्रोधः आत्मनः परिणामो मोहकर्मोदय जनितः। प्रशमरति प्रकरण, 2, का० 25 ___की टीका, पृ० 20 19. क्रोथः परितापकरः ...........क्रोधसुगतिहन्ता। वही, 2, का, 26, पृ० 21 20. तत्मादिह परलोकयोरपायकारी क्रोथ इति। वही, 2, का० 26 की टीका, पृ० 21 21. श्रुतशील विनय संदूषणस्य ........पण्तिथ्योदयात्। वही, 2, का, 27, पृ० 21 22. मायाशीलः पुरुषो........ तथाप्यात्मदोषहतः। वही, 2, का० 28, पृ०22। 23. सर्वविनाशायिणः........दुःखान्तरमुपेयात्। वही, 2, का० 29, पृ० 23। 24. एवं क्रोथो ......... भवसंसारदुर्गमार्गप्रणेतारः। वही, 2, का० 30, पृ०24। 25. मिथ्यादृष्टय विरमणप्रमादयोगास्तयोर्बलंदृष्टम्। वही, 2, का० 33, पृ० 25 26. मिथ्यादर्शनंमिथ्यादृष्टिः........... तत्वार्थाश्रद्धानतक्षणम्। वही, 2,का० ३३ की टीका, -- पृ० २५ 27. प्रशमरति प्रकरण, का० 33 की टीका, पृ० 25 28. अविरमणमविरतिः अनिवृतिः पापाश्यात्। वही, पृ० 25 29. निद्राविषयकषायविकटविकथाख्यःपंचथा। प्रशमरति प्रकरण, ८, का० १५७ की टीका, पृ० 108 30. विषवैन्द्रियनिद्रा विकथाक्ष्यः चतुर्विध प्रमादः। वही, 2, का० 33 की टीका, पृ० 25 31. सर्वार्थसिद्धि, 2, 26, पृ० 183 32. मनोवावकाख्या योगाः। वही, 2, 33 की टीका, पृ० 25 33. तत्रप्रदेश बंधो योगात्तदनुभवनं ....... लेश्या विशेषण। वही, 4, का० 37, पृ० 29 34. श्लेषड़व वर्णबंधस्य कर्मबंधस्थिति विधायः। वही, 4, का० 38, पृ० 30 5. योगपरिणमो लैश्य। प्रशमरति प्रकरण, 4, 38 की टीका० पृ० 30 36. कषाय से रंगी हुई योग प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। 37. मनसः परिणाम भेदाः........ श्लेषो वर्णानांन्धे दृढ़ीकरणम्। वही, 4, का० 38 की टीका, पृ० 34 38. ताः कृष्णनीलकापोत तैजसी पद्म शुक्ल नामानः। वही, 4, का० 38, पृ० 30
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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