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________________ प्रथम अध्याय भूमिका (क) ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार : ग्रन्थकार का परिचय प्रशमरति प्रकरण नामक ग्रन्थ के लेखक के विषय में यहाँ गम्भीरता से विचार करना होगा। यद्यपि ऐसी मान्यता है कि प्रशमरति प्रकरण के रचयिता आचार्य उमास्वाति हैं। लेकिन यहाँ प्रश्न होता है कि क्या सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्र के रचयिता आचार्य उमास्वाति ही इसके रचयिता हैं या अन्य दूसरे कोई उमास्वाति नाम के आचार्य जैन परम्परा में हुए हैं जो इसके कर्त्ता है? हमारी इस शंका का आधार यह है कि जिस आचार्य ने सूत्ररूप में अपनी कृति की रचना की थी, उसने इस कारिकाबद्ध ग्रन्थ की रचना क्यों की ? यहाँ यह उल्लेखनीय है कि तत्वार्थसूत्र की विषयवस्तु एवं प्रशमरति प्रकरण के विषयवस्तु में पर्याप्त अन्तर नहीं है । अन्तर होने पर भी तत्वार्थसूत्र की तरह इसे भी सूत्ररूप में उन्होंने इसकी रचना क्यों न की जबकि आचार्य उमास्वाति का जो काल निर्धारण किया जाता है, वह समय सूत्रकाल माना जाता है। एक बात यह है कि आचार्य उमास्वाति श्वेताम्बर परम्परा में बहुचर्चित आचार्य माने गये हैं। यद्यपि उमास्वाति उमास्वामी के नाम से दिगम्बर परम्परा में भी प्रसिद्ध हैं, लेकिन दिगम्बर परम्परा इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि तत्वार्थसूत्र पर इन्हीं उमास्वामी ने भाष्य लिखा है, जिसने तत्वार्थसूत्र की रचना की थी। इस परम्परा में यह भी प्रसिद्ध है कि तत्वार्थसूत्र पर भाष्य लिखनेवाले कोई दूसरे ही आचार्य हुए हैं। यदि इस त को स्वीकार कर लिया जाए तो तत्वार्थसूत्र के कर्त्ता उमास्वाति या उमास्वामी प्रशमरति प्रकरण के सृजक नहीं हो सकते हैं। प्रशमरति प्रकरण के टीकाकार आचार्य हरिभद्र सूरि ने भी अपनी टीका में इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि उमास्वाति विरचित प्रशमरति प्रकरण पर ही उन्होंने टीका लिखी है। यदि सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्र के रचयिता आचार्य उमास्वाति प्रशमरति प्रकरण के कर्ता
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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