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________________ विंबं छादयिता तदंशुनिवहै राहो द्विजा महो दूर्वापिष्टपयोघृताक्तजतुधूपेनेशदिश्यय॑से ।। ३५॥ हे राहो आगच्छ राहवे स्वाहा।। षष्ठे षष्ठ उपेत्य मासि तपनस्येंदोस्तमोविंबवद्विबादिबमधश्चरन्मलिनयत्रंशद्धमैस्तद्वियत् । दर्शातेधिवसनिहोर्ध्वदिशि तत्केतो सकुल्माषकं स्फूर्जत्केतुसहस्रदेह सकुशं विल्वाड्यधूपं भज ॥ ३६॥ हे केतो आगच्छ केतवे स्वाहा। एते सप्तधनुःप्रमाणवपुरुत्सेधा नवापि प्रहाः शश्वञ्चंद्रबलाबलाप्यसदसदानस्फुरद्विक्रमाः । यह राहुकी पूजा हुई ॥३५॥ “षष्ठे " इत्यादि श्लोक पढकर “हे केतो" इत्यादिसे आह्ना नादि करे फिर ओह्रींमें " केतवे" लगाकर जलादि अष्ट द्रव्य चढावे । यहां कुल्माष (कुहालथी) के चूनको दर्भके ईधनसे पकावे तथा घी मिले हुए कच्चे वेलकी धूपसे आहूतियां दे। यह केतु ग्रहकी पूजा दुई ॥३६ । उसके वाद " पते "इत्यादि श्लोक पढकर “ओं ह्रीं"IRI उन्न्न्न्क न्सन्छन्द -
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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