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________________ जन्न्न्न्न्न | हे आदित्य आगच्छ आदित्याय स्वाहा आदित्यानुचराय स्वाहा आदित्यमहत्तराय स्वाहा अग्नये| हास्वाहा अनिलाय स्वाहा वरुणाय स्वाहा सोमाय स्वाहा प्रजापतये स्वाहा ओं स्वाहा भूः स्वाहा भुवः । स्वाहा स्वः स्वाहा ओं भूर्भुवः स्वः स्वधा स्वाहा ओं आदित्याय स्वगणपरिवृताय इदमय पाद्यं गंधं || पुष्पं धूपं दीपं चरुं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति ? स्वाहा । इत्यादित्याह्वाननं । “यस्यार्थे क्रियते कर्म स प्रीतो नित्यमस्तु मे । शांतिकं इत्यादि । तद्धिबादुरुविंबमष्टभिरितो भागैश्चरद्योजनाशीत्योर्ध्व तदिवाब्दलक्षयुतपल्लयोकायुरग्नेर्दिशि। शीतांशो सरलायकिंशुकसमित्सिद्धान्नदुग्धादिभि स्त्वं कापालिकसत्क्रियाप्रिय इह घाय ग्रहाग्रप्रभो ॥२९॥ हे सोम आगच्छ सोमाय स्वाहा । करता हूं वह देवता मेरे ऊपर हमेशा प्रसन्न रहे । ऐसा अंतमें सव जगह कहना चाहिये ॥ २॥२८॥ इस प्रकार सूर्यकी पूजाविधि हुई । " तद्विंबादुरु' इत्यादि श्लोक पढकर हा“ हे सोम" इत्यादिसे आह्वानादि करे फिर पूर्व कही ओह्रींमें “ आदित्याय" की जगह “ सोमाय " बोलकर जलादि आठ द्रव्य चढावे ॥ देवदारुकी लकडीका चूरा घी ढाककी लकडीसे पकाया अन्न दूध-इन सबको मिलाकर आहूतियां अग्निमें दे, यह सोमकी पूजा ड
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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