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________________ प्रसा० Moप्रतिष्ठाचार्यके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये। दूसरी वात यह है कि प्रतिष्ठाचार्यको भी अत्यंत लोभके वशीभूत प्रस्ता० होकर इसबातका ध्यान नहीं रहता कि मैं यजमानके साथ अयोग्य वर्ताव तो नहीं करता । वस यजमान और प्रति॥ ३ ॥ छाचार्य इन दोनोंके अयोग्य वर्ताव होनेसे प्रतिष्ठाके समय अनेक विघ्न आकर उपस्थित होजाते हैं तब प्रतिष्ठाका फल निष्फल होजाता है। यही विचारकर मेरा मन संक्षिप्त भाषाटीका सहित इस प्रतिष्ठापाठको प्रकाशित करनेका हुआ है। जिससे सब साधारण भव्यजीवोंको यह वात मालूम होजावे कि प्रतिष्ठा करानेमें किन २ चीजोंकी आवश्यकता है| और यजमान तथा प्रतिष्ठाचार्यको कैसा बर्ताव रखना चाहिये । | यह महान् ग्रंथ पंडितप्रवर श्री आशाधर गृहस्थाचार्यका बनाया हुआ है। इन्होंने श्री वसुनंदि आचार्यकृत प्रतिष्ठासार संग्रहके विषयका उद्धार करनेके लिये विस्तारसहित पूर्वोक्त प्रतिष्ठासारोद्धार नामका ग्रंथ रचकर भव्यजीवोंका उपकार किया है। इन्हीं विद्वद्वरने धर्मामृत आदि अनेक अपूर्व ग्रंथोंकी रचना की है, उसका उल्लेख प्रश४ास्तिमें किया गया है। और जीवनचरित्र भी संक्षेपमें प्रशस्तिमें है तथा सागार धर्ममृतमें मुद्रित हो चुका है इसलिये यहां लिखनेकी विशेष आवश्यकता नहीं है। इस ग्रंथकी भाषाटीका अबतक देखनमें नहीं आई और न मैंने अबतक कोई प्रतिष्ठा करानेका काम ही किया। उसमें भी प्रतिष्ठाकी क्रिया करानेवालोंको लोभकषायके वश चित्तमलिनता होनेके कारण विधि वतलानेमें सहायता देना असंभव समझ उनके पास भी जाना व्यर्थ समझा । इसलिये मूल संस्कृतपरसे ही|| बुद्धिके अनुसार भाषाटीका संक्षेपसे लिखी गई है। __ इस ग्रंथकी एक हस्तलिखित प्रति तो पूर्ण मिली तथा दूसरी अधूरी मिली। ये दोनों प्रतियां लेखकोंकी कृपासे || प्रायः अशुद्ध मिली, इसलिये अर्थकरनेमें वहुत कठिनाई हुई । अस्तु । 'न कुछसे कुछ होना अच्छा' इस कहावतको| O ॥ ३॥ लेकर यह उद्यम किया गया है।
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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