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________________ प्रसा० अत्र त्वाकारशुद्धयादिविधिमादर्शविंघिते । कुर्यादिति श्रुतस्कंधं स्तुयात्सूत्रोदितं स्मरेत ॥३५॥ भाण्टी० ॥१३॥ आचार्यादिगुणान् शस्य सतां वीक्ष्य यथायुगम्।गुर्वादेःपादुके भक्त्या तन्नयासविधिना न्यसेत् । घटयित्वा जिनगृहे तत्प्रतिष्ठामहोत्सबे । निषेधिकां प्रतिष्ठाय रक्षकांगो जनाननौ ॥ ३७॥ नीत्वा निवेशयेदत्र पठित्वाराधनास्तवम् । ध्यायेत् प्रसिद्धं संन्यासं समाधिमरणादिषु॥३८३ बहिरेवाथ निर्माप्य तां स्वस्थाने निवेशिताम् । स्वयं जप्त्वा प्रियं वाहत्प्रतिष्ठातिलकक्षणे॥३९/१ प्रापय्य तिलकं तत्र गत्वा शेषविधि स्वयम् । कुर्यादिंद्रः सः ततः संघः कुर्यायथागमम् ४० : तत्रैव वा प्रतिष्ठोक्तविधि सर्व समासतः । कृत्वा प्रतिष्ठयेल्लग्ने तां वा वीरशिवक्षणे ॥४१॥ 15 इति श्रुतदेवतादिप्रतिष्ठाविधानम् । अथ यक्षादिप्रतिष्ठा । यहां पर अभिषेक आदि क्रिया दर्पणमें प्रतिबिंबित करके करनी चाहिये । इस प्रकार : जिनसूत्रकथित रीतिसे श्रुतस्कंधकी पूजा करे ॥ ३५ ॥ आचार्य आदिके गुणोंकी स्तुति करके गुरुकी पादुका ( चरणयुगल ) वनवाके उनकी स्थापना करे ॥ ३६॥ जिनमंदिरमें एक समाधिकी जगह वनावे वहां गुरुकी पादुकाओंको स्थापन करके ? उनके गुणोंका तथा समाधिमरणका चितवन करे ॥ ३७॥ ३८ ॥ ३९ ॥ वहांपरं तिलक आदि विधि वह इंद्र आप भी करे तथा अन्य श्रावकोंसे शास्त्रानुसार करावे ॥४०॥ उस जगह यदि संक्षेप विधि करनी हो तो आगमके अनुसार सरस्वती आदिकी प्रतिष्ठा गुरुप्रतिष्ठाके समय तथा महावीर प्रभुके मोक्षकल्याणके दिन ॥१३३॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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