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________________ स्थापितस्याचलस्थाने पीठस्याण लक्ष्मणः । नयेत्समीपं प्रतिमा तत्रागेपयितुं स्थिगम६५/ सौवर्ण राजतं तानं शैलं वा चतुरस्रकम् । रम्यं पत्रं विनिर्माप्य सदलं मसणं तथा ॥६६॥ तिर्यगृ;ष्टरेखाभिर्वत्राग्राभिः समालिवेत् । मंडलं व्येकपंचाशत्कोष्टकं श्लक्ष्णरेखकम्।।६७॥ अकारादि हकारांतं कोप्टेष्वकैकमक्षरम्।बाह्यकोणस्थितात्कोष्टात् पादक्षिण्येन संलिखेत् ॥६॥ मध्यमे कोष्ठके तत्र इंकारं सोयरेफकम् । जयादिदेवताधिष्टपत्रपद्मस्य मध्यगम् ॥ ६९ ॥ वज्राग्रे प्रणवं दद्यात्कामबीजं तदंतरे । त्रिर्मायामात्रयावेष्टय निरंध्यादंकुशेन तु ॥ ७० ॥ दोषोंसे रहित हो अशोक वृक्षादि प्रातिहार्योंसे युक्त हो और दोनों तरफ यक्ष यक्षीले वेष्टित हो ऐसी जिन प्रतिमाको वनवाकर विधि सहित सिंहासनपर विराजमान करे ॥६३।६४॥ वह विधि इसतरह है कि निश्चल स्थान में रखे हुए सिंहासनके ऊपर निर्दोष लक्षणवाली प्रतिमाको स्थिर रूपसे विराजमान करे ॥६५॥ फिर सोना चांदी तांबा पत्थर-इनमें से |किसी एकका चौकोन चिकना पत्र बनवावे उसपर सीधी तिरछी अग्रभागमें वत्र चिन्हवाली आठलकीरें खींचं उसमें उनचास कोठांवाला सीधी रेखाओंकर युक्त एक मंडल खींचे ॥६६ ॥६७॥ उन कोठोंमें अकारसे लेकर हकारतकक एक अक्षरको लिखे ॥६८॥ बीचके कोठेमें है ' लिखकर उसके चारों तरफ आठदलका कमल बनावे उसमें जया आदि आठ देवताओंका स्थापन करे ॥ ६९ ॥ वज्रके अगाडीके भागमें 'ओं' लिखै दो। वज्रोंके मध्यमें ‘ली ' लिदै और ईकारसे तीनवार चारों तरफसे घेरकर ' क्रौं इस अंकु SC
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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