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________________ Recen 0000000000000 सर्वकर्मक्षयस्यायमनादिभवपर्ययः । विनाशस्याशुकोनं तसिद्धत्वादिगतेरयम् ॥ १४४ ॥ आदेय सहजज्ञानोपयोगैश्वर्यचार्यसौ । एष देहसाहात्येक्षोपयोगैश्वर्यगोचरः ॥ १४५ ॥ एतदर्थारोपणपरायणांतःकरणः पठित्वा प्रतिमोपरि पुष्पाजलिं क्षिपेत् । इत्यष्टचत्वारिंशत्सं|स्कारमालारोपणविधानम् । अथ मंत्रन्यासविधानम् । | विश्वोद्भासि परब्रह्मव्यंजकं स्यात्पदांकितम् । शब्दब्रह्मेति मंत्रालीं न्यस्यामीह जिनेशिनः १४६ मंत्रन्यासप्रतिज्ञानाय प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । | भालनेत्रश्रवोनासाकपोलरदपंक्तिषु । स्कंधयोर्मूर्ध्नि जिह्वाग्रे ओमायाई रमोत्तरान् ॥ १४७ ॥ | स्थापनाका विधान हुआ । अव मंत्रन्यास विधि कहते हैं- मैं स्यात्पदसे चिन्हित, जगतका प्रकाशक और परब्रह्मको कहनेवाले ऐसे शब्दब्रह्म इस मंत्रको अर्थात् ब्रह्म नामको जिनेश्वर में स्थापित करता हूं ऐसा कहकर मंत्रन्यासकी प्रतिज्ञा प्रगट करनेकेलिये प्रतिमाके ऊपर पुष्पोंकी अंजलि चढावे ॥ १४६ ॥ उसके बाद “ भाल" इत्यादि चार श्लोक बोलकर ओं ह्रीं अ श्रपूर्वक अकारादि वर्णोंको शरदऋतुके निर्मल चंद्रमाके समान चिंतवन करे तथा प्रतिष्ठेय प्रतिमामें हाथसे स्थापन करे । वह इसतरह हैं- "ओं" इत्यादिको ललाटमें दाहिनी वांईं तरफ स्थापन करे, इसीप्रकार 'इई' को नेत्रोंमें, उऊको कानोंमें, ऋऋ को नाकमें, लुलुको गालों पर, एऐ को दांतोंमें, ओ औ को कंधेके दोनों भागोंमें, अं को मस्तकमें, अःको जीभके अगाड़ीके भागपर, कवर्गको दाहिनी
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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