SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पळसा० ११०॥ अ०४ विशिष्टतपोनुष्ठानप्रतिष्ठाथै प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । मान्टी ततो! तां पुर्वेदी नीत्वाताभिः सहजसाध्यानावतारितजिनां योजयेत् तिलकादिना ११४ एष क्रमश्चलार्चानां विस्तरेण प्ररूपितः। स्थिराणांतु यथास्थाने सर्वमेन प्रकल्पयेत्॥११५॥ किंच-गर्भावतारादिविधिः समस्तं स्थानस्थिता चाल्याजनेन्द्रविंबे। संकल्प्य सिंहासनपादपीठमध्येस्य हैमीं निदधे शलाकाम् ॥ ११६ ॥ श्रीपादपीठसिंहपीठयोर्मध्ये सुवर्णशलाकानिवेशनम् । इति निःक्रमणकल्याणस्थापना अथातस्तिलकदानविधानं । तत्रादौ तावकल्याणपंचकरोपणमनुवर्णायष्यामः । यद्गर्भावतरे गृहे जनयितुः प्रागेव शक्राज्ञया षण्मासान्नव चानु रत्नकनकं वित्तेश्वरो वर्षेति । विशेषतपस्या स्थापन करनेकेलिये प्रतिमाके ऊपर पुष्पांजलि क्षेपण करें ॥ ११३॥ उसके । वाद उस प्रतिमाको वेदीपर लेजाकर तिलकादि क्रियासे युक्त करे॥११४॥ यह क्रम चल प्रतिमाओंका विस्तारसे कहा गया है परंतु स्थिर प्रतिमाओंका उसी स्थात पर कल्पना करे ॥ ११५॥ “ गर्भाव " इत्यादि बोलकर भद्रासनोंके मध्यमें सोंनेकी सलाई रखे। यह निष्क्रमण कल्याणकी स्थापना हुई ॥ ११६॥ अब तिलकदानविधि कहते हैं । उसमें||१०३॥ सवसे पहले पांच कल्याणोंका स्थापन कहते हैं। जिस प्रभुके गर्भ में आनेके पहलेही छह है न्छन्व
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy