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________________ प्र०स० भान्टी० . ५॥ अ०४ संश्लिष्टं हक्सहस्रावितव्यघृणिफणारत्नरुक्तृप्तवाल अनौद्यापीडमईच्छ्रितमहि यमधौमि पनासमेतम् ॥ ६१॥ हे धरणेंद्र आगच्छागच्छ धरणेद्राय स्वाहा........................ । वैरिस्तंवेरमास्रोल्लसदरुणसटाटोपशुभ्रांगभीकृ-- द्वालेंदुस्पर्द्धिदंष्टोत्क्रमखरनखरारक्तहक सिंहसंस्थम् । कुंतास्त्रं रोहिणीष्टं कुवलयसुमनः स्रक श्रितां शंभयुक्तं ज्योत्स्ना पीयूषवर्ष यज यजनपरं सोममधैं महामि ॥ ६२ ॥ हे सोम आगच्छागच्छ सोमाय स्वाहा.................................... । एवं सत्कृत्य दिक्पालानेभ्यो मंत्रैः पुनर्ददे । अकुंडे सप्तशः सप्तधान्यमुष्टिभिराहुतिः ॥६३॥ ओं क्रौं इंद्राय स्वाहा । अनेन जलपूर्णकुंडे सप्तमे सप्तधान्यमुष्टिमिरिंद्राहुतिं दद्यात् ।। इत्यादि बोलकर धरणेद्रको अर्घ चढावे ॥६१ ॥ “ वैरिस्तं " इत्यादि तथा “ हे सोम II इत्यादि बोलकर सोम दिक्पालको जलआदि अष्ट द्रव्य चढावे ॥ ६२ ॥ “ एवं " इत्यादि। तथा “ ओं आं" इत्यादि बोलकर " इत्यादि बोलकर जलसे भरे हुए कुंडमें सातवार सात धान्योंकी मुठी ॥९५॥ भरकर आहूतियां दे ॥ ६३॥ इसीतरह अग्नि आदिके कुंडमेंभी जानना। उसके बाद फिर हा
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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