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________________ ब्ल ... अष्टंद्रादीन् क्षितिपुरबहिर्दिक्षु देवीजयाद्या न्यस्य द्वारेष्वनु च चतुरो यक्षदेवान् यजामि ।। २२८ ॥ ईशानवेद्यां यागमंडलपूजाप्रतिज्ञानाय पुष्पांजलिं क्षिपेत् । अथ पूर्वविधिना कर्णिकांतःस्थापितां परब्रह्मादिपूजां विधाय पद्मदलेष्वष्टौ श्यादिदेवीः पूजयेत् । तथाहि । याः सामानिकपर्षदंबुनपरीवारान्वया यूप्रभू पद्मादिहदपुष्करेंदुविशदप्रासादवासा मुदा । सेवंते बहुधा जिनेंद्रजननी यादीनयंत्यो गुणान् भांती पुष्पमुखैः करात्तकलशैस्ताः श्यादिदेवीर्यजे ॥ २२९ ॥ श्यादिदेवीसमुदायपूजाविधानाय पत्राष्टके कुंकुमालुलितपुष्पाक्षतं क्षिपेत् । अथ पृथगिष्टिः । । की पूजाविधि हुई । अब उत्तरवेदीकी पूजा कहते हैं । “वेद्यां” इत्यादि श्लोक पढकर ई-16 शानवेडीमें यागमंडलकी पूजा करनेके लिये पुष्पोंको क्षेपण केर ॥ २२८ ॥ अब पहले कही हुई विधिके अनुसार कर्णिकाके मध्यमें स्थापित अरहंत आदि परमेष्ठीकी पूजा करके आठ 2 कमलपत्रोंपर श्री आदि आठ देवियोंकी पूजा करे। उसीको कहते हैं । "याःसामा" इत्यादि श्लोक बोलकर श्रीआदि देवीयोंके समूहकी पूजा करनके लिये आठ पत्तोंपर केशरसे। लेपे हुए पुष्पअक्षताको क्षेपण करे ॥ २२९ ॥ अब जुदी जुदी पूजा कहते हैं। "यायाः" कन्सन्लन्डन्न्कन्सन्न -
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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