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________________ प्रसा० भान्टी० अ०३ ...ओं ही गोमधकि देवि इदं............................ । सपषमुशलाभोजदाना मकरगा हरित् । गांधारी सप्ततीवास तुंगमधुनतार्यते ॥ १६६ ॥ ओं ह्रीं विद्युन्मालिनि देवि इदं................. पपिदंडोच्चतीर्थेशनता गोनसवाहना । ससर्पचापसषुर्वैरोटी हरितार्यते ॥ १६७॥ | ओं ह्रीं विद्यादेवि इदं................................ । हेमामा हंसगा चापफलबाणवरोधता । पंचशश्चापतुंगाईद्भक्ता नतमतीज्यते ॥ १६८ ॥ ओं ह्रीं कुंभिणि देवि इदं...............................। सांबुनधनुदानांकुशशरोत्पला व्याघ्रगा प्रबालानिमा। नवपंचकचापोच्छ्रितजिननम्रा मानसीह मान्येत ॥ १६९॥ कन्कन्सन्छन्काउन्सलन्छ ॥ ७ ॥ तथा “ओह्रीं” कहकर विद्युन्मालिनीदेवीको जलादि चढावे ॥ १६६॥ षष्ठि" इत्यादि तथा ओही" बोलकर विद्यादेवीको जलादि द्रव्य चढावे ॥१६७ ॥ "हेमामा" तथा ओहीं"21 बोलकर कुंभिणिदेवीको जलादि द्रव्य चढावे ॥ १६८॥"सांबुज" इत्यादि तथा “ओह्रीं"
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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