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________________ [१७] ३ संघयण - संघण नहीं, नारकी में अशुभ पुद्गल परीणने और देवता में शुभ पुद्गल परीणमें । ४ संठाण - नारकी में संठाण पावे एक हुण्डक, देवता में संठागा पावे एक समचोरंस | ५ कषाय- नारको देवता के १४ दंडक में कषाय पावे च्याऊं ही । ६ मंज्ञा- नारकी देवता के १४ दण्डकमें संज्ञा पाये १ व्या ही । I ७ लेश्या - पहिली दुजी नारकी में लेश्या पावे एककापोत। तीसरी नारकी में लेश्या पावे दोय-कापोत और नील | चौधी नारकी में लेश्या पावे एक-नील पांचमी नारकी में लेश्या पावे दोय नील और कृष्ण । छटी नारकी में लेापावे एक- कृष्ण । सातमी नारकी में लेश्या पावे एक महाकृष्ण । दश भुवनपति और वाणव्यन्तर देवता में लेश्या पावे च्यार पहेलड़ी। ज्योतिषी तथा पहिले दजे देवलोक में लेइया पावे एक तेजो। तीजे चोथे पांच में देवलोक में लेश्या पावे एक पद्म । छठे देवलोक में नववेक तक लेश्या पावे एक शुक्ल । पांच अनुत्तर विमागणा में लेइया पावे एक परम शुक्ल । ८ इन्द्रिय- नारकी और देवता में इन्द्रिय पावे पांच२ ९ समुद्घात - नारकी में समुद्घात पावे च्यार ३
SR No.022356
Book TitleLaghu Dandak Ka Thokda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages60
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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