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________________ ३४४४४88888888888888888888 प्रत्येक कर्म के उत्तर प्रकृतियों की गणना भी विद्यमान है। 'कर्म' का विशिष्ट परिशीलन करने के लिए उत्तराध्ययन सूत्र ३३ वें अध्ययन तथा कर्मग्रन्थ का विधिवत् परिशीलन करना चाहिए । * लेश्या आचार्य श्री ने लेश्या के सम्बन्ध में भी सरल रीति से सारगर्भित श्लोकों के माध्यम से विवेचन किया है - आत्मनः परिणामाश्च नैकधाः सन्ति विश्रुताः । सत्त्वानुगाश्च षड्लेश्या गणिताः तीर्थनायकैः ॥ कृष्णादयश्चतस्रः ताः न वरा दुःखदा मताः । पद्मा शुक्ला उभे श्रेष्ठे जीवानां हितकारिके ॥ (जैन सि. कौ. ५३५-५३६) अध्यवसायों की तरतमता को जैनदर्शन में 'लेश्या' कहते हैं। लेश्या के छह प्रकार हैं १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोती लेश्या ४. तेजोलेश्या ५. पद्मा लेश्या ६. शुक्ल लेश्या अध्यवसायों के तीव्र व मन्द होने के अनुसार शरीर प्रवाहित पुद्गल में लेश्याओं के रंगों की झलक प्राप्त होती है । लेश्याओं के १४४४४४४४8888888888888888888 • उनतीस
SR No.022355
Book TitleJain Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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