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________________ 888888888888888888888888888888 7. मोक्ष जीवात्मा से कर्मबन्ध का मिट जाना / छूट जाना ही मोक्ष कहलाता है । कर्मों का सर्वथा क्षय हो जाना- द्रव्य मोक्ष है तथा कर्मों के सर्वथा क्षय होने के कारण आत्मा का निर्मल परिणाम- यानी सर्वसंवर भाव अबन्धकता शैलेशी भाव या चतुर्थ शुक्ल ध्यान भाव मोक्ष कहलाता है। यही आत्मा की सिद्धत्व परिणति है। ज्ञान जैन दर्शन के अनुसार सम्यग्ज्ञान के भेदों के सन्दर्भ में संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है - ज्ञायते अनेन इति ज्ञानम् । सम्यग् ज्ञायते अनेन - इति सम्यग् ज्ञानम् । अर्थात् वस्तु तत्त्व का यथार्थ ज्ञान जिससे होता है, उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं। मौलिक रूप से ज्ञान के पाँच प्रकार जैनदर्शनों में संवर्णित हैं। आचार्य श्री सुशील सूरीश्वर जी महाराज साहब ने प्रस्तुत 'जैन सिद्धान्त कौमुदी' में कहा है - : पुन: पंचविधं ज्ञानं, जिनाज्ञा पथि वर्तिनाम् । मति श्रुताऽवधिचित्त पर्याय- केवलानि च ॥ जै. सि. कौ. श्लोक ७६ आचार्य श्री ने श्लोकों के माध्यम से विस्तृत चर्चा की है। 88888888888888888888888 Q • सोलह
SR No.022355
Book TitleJain Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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