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________________ B888888888888888888888888888888888885 जैन धर्मदर्शन में नौ तत्त्वों (पदार्थों) की चर्चा है - १. जीव २. अजीव ३. आस्रव ४. पुण्य ५. पाप ६. बन्ध ७. संवर ८. निर्जरा ९. मोक्ष किन्तु उमास्वाति ने पुण्य तत्त्व एवं पाप तत्त्व को आस्रव तत्त्व के अन्तर्गत मान कर सात तत्त्वों का ही प्रतिपादन किया है। वस्तुत: तत्त्व दो प्रकार के ही हैं - जीवतत्त्व अजीव तत्त्व सर्वसामान्य अपेक्षा से जीव द्रव्य एक ही प्रकार का होता है तथा &| अजीव द्रव्य पाँच प्रकार का - १. पुद्गल २. धर्म ४. आकाश ५. काला ३. अधर्म 88888888888888888888888888888888888888888888 इन भेदों को ही षड्द्रव्य के नाम से व्यवहृत किया जाता है किन्तु एतावन्मात्र से मोक्षमार्ग का स्पष्टीकरण नहीं होता है। अत: उमास्वाति के द्वारा प्रदर्शित सात तत्त्वों का ज्ञान नितान्त अपेक्षित 888888888888888888888888888888888888888888888 1.जीव जीवति - प्राणान् धारयतीति जीव: । चैतन्य गुण सम्पन्न | 'जीव' कहलाता है। जो ज्ञान दर्शन की उपयोगिता को धारण करने | वाला है - उसे 'जीव' कहते हैं। जीवतत्त्व में - देव-मनुष्यतिर्यञ्च नरकगति तथा मोक्ष में विद्यमान सभी जीव आते हैं। B888888888888888888888888888888 @ । तेरह .
SR No.022355
Book TitleJain Siddhant Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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