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________________ रखा कान्तिवाळा अने लांतकादि उपरना सर्व देवलोकना देवानो वर्ण एक बीजाथी उत्तरोत्तर उज्वल, उज्वलतर अने उज्वलतम कह्यो बे. सिझना जीवोनी क्षेत्रावगाहना जघन्य एक हाथ ने आठ अंगुलनी, मध्यम चार हाथने सोळ अंगुलनी अने उत्कृष्टी त्रणसें तेत्रोस धनुष्यने बत्रीस अंगुलनी जाणवी. था श्रवसर्पिणो काळमां त्रीजा, चोथा धारामा चोवीस तिर्थकर थया तेमनुंदेहमान-रुषन्नदेवनु५०० धनुष्यनु, अजीतनाथर्नु ४५० धनुष्यनु, संन्नवनाथर्नु ४०० धनुष्यनु, अनिनंदन- ३५० धनुष्यनु, सुमतिना थर्नु ३०० धनुष्यनु, पद्मप्रचुर्नु २५० धनुष्यनु, सुपार्श्वनाथनुं २०० धनुष्यनु, चंडप्रजुनुं १५० धनुष्यनु, सुविधिनाथर्नु १०० धनुष्यनु, शीतळनाथनुं एक धनुष्य मुं, श्रेयांसनाथy G० धनुष्यनु, वासुपूज्यनुं ७० धनुप्यनु, विमळनाथर्नु ६० धनुष्यनु, अनंतनाथर्नु ५० धनुष्य-, धर्मनाथ- ४५ धनुष्यनु, शांतिनाथन ४० धनुष्यनु, कुंथुनाथर्नु ३५ धनुष्यनु, अरनाथर्नु ३०धः
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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