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________________ (४७) अथ त्रीजु शरीरहार. शरीर-"शीर्यते तबशरीरं " प्रतिक्षणेपुद्गलना उपचयअपचयेकरीने वधे, घटे ते शरीर कहीए; ए शरीर पांच .१ औदारिक, २ वैक्रिय, ३ आहारक, ४ तैजस, ५ कार्मण, - औदारिक-उदार-प्रधान तिर्थंकरगणधरादिक पदवीनीअपेक्षाएसर्वशरीरोमां उत्तम, स्थुल पुद्गलोर्नु बनेझुं, उत्पन्नथयापनीतरतवधे, घटे, परिणमे अने - दन नेदन ग्रहणादियश्शकएवं; औदारिकनाम क. मनांउदये औदारिकशरीरयोग्य पुद्गलग्रहणकरीजीव पोताना प्रदेशसाधेमेळवी शरीरपणेनिपजावे ते श्री. दारिकशरीरकहेवाय . वैक्रिय-विविध प्रकारनी विक्रिया करे जेमके नानामोटुं-मोटानुनानु, सुरुप-कुरुप-कुरुपर्नुसुरुप, दृश्य-अदृश्य-अदृश्य-दृश्य, एकनुं अनेक-अनेकनुं एक, अप्रतिघातीनुं प्रतिघाती-प्रतिघातीन अप्रति घाती, नूचरनुंखेचर-खेचरनुं जूचर, इत्यादि घणा प्रकार- यश्शकेएवं वैक्रिय नामकर्मनां उदयथी वैक्रिय
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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