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________________ (४५) राजलोकनां बेमे आकाशनां आधारे पांचअनुत्तरविमान ले तेनोएक प्रतरने पांच विमान .तेमां वचनु सर्वार्थसिविमान लाख जोजन- लांबु पहोलू अने वाटडं जे ते सर्वार्थ सिह विमाननी चारे दिशाए अनुक्रमे विजय, विजयंत, जयंतने अपराजीत एम चार विमान . ते त्रिखुणां . ते विमानना नोंयतळीयानो पृथ्वीपीमबे हजारने एकसो जोजन जामो बे. ते विमानो एक हजार ने एकसो जोजन उंचा, असंख्यात जोजननां लांबा पहोळां अने एक धोळा वर्णनांज . ते पांच अनुत्तर विमाननी उपर बार जोजने, पीस्तालीस लाख जोजननी लांब पदोळी, बत्राकारे, मध्यत्नागे था जोजननी जामी, मे माखीनी पांख जेवी पातळी, एकक्रोम बढ़ेतालीस लाख त्रीसहजार बसें उंगणपचास जोजन काफेरी परिधि अने पाणीनाकणीया,मचकुंदनुंफूल,रुपानोपाटो ने मोतीना हारथी पण अधिकउजळी एवी प्तिपशिलाले. ते सिशिलानी उपर एक जोजनने मे लोकनो अंत डे तीहां एक गाउनो छोनाग एटले त्रणसेंतेत्रीस धनु
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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