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________________ ४ घणी तेनी मूल कीमते वेचाण करेली छे तेमा जे खर्चमां खुटता रुपैया पुरा करी जे वद्ये ते आ दंडकादि द्वार संग्रह नामना पुस्तक मां वापरवा पूज्यपाद गुरुणीजी महाराजे परवानगी आपेली छे कारणके आ पुस्तकमां बीलकुल नहींज जेवी अल्प मदद मळेली छे तो पण आ पुस्तक पुज्यश्रीए योग्य साधुसाध्वीजी महाराजाने भेट आपवा मुकरर करेलुं छे अने श्रावक श्रावीकाओने जेमने आ पुस्तकनी जरुर होय तेमने प्रसिद्ध कर्तानी पांसेथी. योग्य कीमते मली शकशे. जेवी रीते उक्त गुरुणीजी महाराज तरफथी उपरना छपावेला बे पुस्तको लोकपीय थइ पडया तेम आ त्रीजुं पण अती उपयोगी पुस्तक लोकप्रीय थइ पडशे तेम अमारु सहज मानवु छे कारण के घणा विस्तारवाळा जाणवा लायक विषयोथी भरपूर छे. वली आ पुस्तकनी आवकनो कोइने अंगत लाभ पण नथी तेनी जे कीमत वेचाणथी उपजशे ते ते पुस्तकना खर्चमा जतांबाकी वधशे ते तेवाज पुस्तको उद्धार अगर ज्ञान खातामांज जवानी छे. जेथी आ पुस्तक खरीदनारने ज्ञान दान अने ज्ञाननुं प्राप्त थर्बु एम बेवडो लाभज छे. ___आ पुस्तक छपाववानो उपदेश करनार पूज्यपाद गुरुणीजी महाराज श्री देव श्रीजीना मुविहित शिष्या साध्वीजी श्रीश्री १००८ वार सौभाग्य श्रीजीमहाराजनो खरा अतःकरणथी आभार मानवामां आवे छे के जे माहा उपगारी गुरुणीजी माहाराज तरफथी उपर बतावेला उत्तम अने लोकप्रीय बे पुस्तको तो बाहार पडी आ जीर्जु पुस्तक पण तेमनाज उपदेश अने प्रेरणानुं फल छे.. अ पुस्तक प्रसिद्ध करवामां जे जे दाना गृहस्थो तथा नोए
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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