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________________ ( ३३ ) ख्याता जोजनवाळा जुवनमां संख्याता देवो रहे बे. व्यंतरना जुवनो - रत्नप्रभा पृथ्वीमां उपर मुकेलो जे एक हजार जोजननो जाको पृथ्वी पींड. तेमांधी एक सो जोजन उपर छाने एक सो जोजन निचे मुकीने वचलो ठसें जोजननो जागो, असंख्यात जोजननोलांबो पहोलो पृथ्वीपकडे. तेमायावजातिनां व्यंतर देवोना उत्तर तथा दक्षिण श्रेणीए असंख्याता भुवनो बे, ते नानामां नाना जरतक्षेत्र, जेवमां, मध्यम महाविदेह क्षेत्र जेवमां ने मोटामां मोटा जंबुद्वीप जेवमा लाख जोजननां बे, ते सर्वे जुवनो बहारथी वाटला, अंदरथी चोखुणां, अने भूमी तळीए कमलनी कर्णीकाने कारे, अति सुंदर, मनोहर, सानुकुल, वर्ण, गंध, रस, वने स्पर्शेकरीनेयुक्त तेमां व्यंतरनां देवो रहे बे. वली रत्नप्रना पृथ्वीमां उपर मुकेलो जे एकसोजोजननो जामो पृथ्वी प तेमांथी दश जोजन उपर छाने दश जोजन नीचे मुकीने वचलो एंसी जोजननो जामो, श्रसंख्यात जोजननो लांबो पहोलो पृथ्वी पींग डे. तेमां आठ 1
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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