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________________ व्यवस्थारुप मर्यादाथी अतित-रहीत जे अर्थात ज्यां स्वामि, सेवक नाव नथी. ते करूपातित कहीए. ते कल्पातित वळी बे प्रकारे ले १ नव ग्रैवेयक श्रने ५ पांच अनुत्तर विमान नवग्रैवेयक-चौद राज लोकरुपपुरुषाकारना ग्रीवा( गळा )ना स्थाने वसवू जे जेनुं तेने प्रैवेयक कहीए ते सुदर्शन, सुप्रतिबक, मनोरम, सर्व ना, विशाल, सुमनस, सोमनस,प्रीयंकर,अनेथादित्य एम नव प्रकारनां अनुत्तर-सर्वथी उपर ले विमान जेना ते अनुत्तर कहीए ते विजय, विजयंत, जयंत,अ. पराजित, श्रने सर्वार्थसि, एम पांच प्रकारना श्रनुत्तर विमान .॥ एवं २४ दमक ॥ . अथ श्री बीजो नुवनहार. प्रथम नारकीना जुवननी विविदा करवाने माटे साते नारकीनां गोत्र कहे . १ रत्नप्रना २ शर्करा प्रना ३ वालुका प्रना ४ पंक प्रना ५ धुम प्रना ६ तम प्रत्ना तम तम प्रना. रत्नप्रजा पृथ्वीने पहेले कामे (वळीये) एटले पृथ्वीना जामपणना अमुक नागे रत्नो घणां ले कडं
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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