SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ · ( ११६ ) ने होय . इतिवेद. पहलेथी चार चारित्र सरागी होय ने ययाख्यात चारित्र वितरागी दोय बे. इति राग, निर्मेयना व नेद बे १ पोलाक, २ बकुस, ३ प्र तिसेवना कुशील, ४ कषाय कुशील, ए निर्बंथ अने ६ स्नातक ज्ञानादिना अतिचार सेववे कर रो व्रतने डुशीत करे ते पोलाक कहीए, शरीरनी सुश्रुषा विजुषा करे अथवा उपकरण बहु मुख्यजल दळता राखे संग्रतेने बकुस कहीए, मुल गुणतो पाळे सेवे पण उत्तरगुणमां कis his बानो दोष लगाने तेने प्रतिसेवना कुशील कहीए, संज्वलन कषायोदये करी कांइक प्रशस्त परिणाम थाय पण मुळगुणमां तथा उत्तर गुणमां कांर दोष लगाडे नहि तेने कषाय कुशील कहीए, संपूर्ण ग्रंथी रहित मोहनीय वर्जीत वितराग स्थ तेने निर्बं कदीर ने घातीकर्म रहित सयोगी केवळी तथा सैलेशी प्रतिपन्न योगी केवळी तेने स्नातक कदेवायडे, सढुंसाधान्यनापुळा सरखा पुलाक, सढुंसाधान्यसरखां बकुस, मसळयाधान्य सरखा प्रतिसेवना कुशिल, उपण्या धान्य सरखां क
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy