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________________ ( १६२ ) नुष्य पर्याप्ता, बादर पृथ्वीकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, बादर पकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, सुक्ष्म पृथ्वीकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता सुक्ष्म पकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता सुक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता, वादर साधारण वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता ऋण विकलेजियना पर्याप्ता अपर्याप्ता तथा वीस तिर्यच पंचेंद्रियना ने एक सोने एक समुमि मनुष्य एम सर्वे मळीने एकसोने इकोतेर नेदमांथी जीवो यावी उपजे. पंदर कर्म जुमिज गर्जज मनुष्य ने वीषे उपर कहेला एकसोने इकोतेर जीवनेद तथा नव्वाणु देवताना नेद ने पहेलीथी बहीनारकी सुधीना नारकी एम सर्वे मळीने बसेंने बोतेर नेदमांथी जीव यावी पजे. त्रीस अकर्म जुमिना मनुष्यने विषे पंदर कर्मनिज गर्जज मनुष्य पर्याप्ता ने पांच गर्भज तिर्यच पर्याप्ता मळी वीसने दम देथी जीवयावी उपजे. उप्पन्न अंतर द्वीपना मनुष्यने विषे पंदर कर्मनुमिज गर्भज मनुष्य पर्याप्ता तथा पांच गर्जज तिर्यचपर्याप्ता
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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